यह मत कहो कि जग में कर सकता क्या अकेला (आर्य समाज भजन)

 
    यह मत कहो कि जग में कर सकता क्या अकेला

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यह मत कहो कि जग में कर सकता क्या अकेला
                      भजन Lyrics

यह मत कहो कि जग में कर सकता क्या अकेला।

लाखों में वार करता इक सूरमाँ अकेला।। टेक।।

आकाश में करोड़ों तारें हैं टिमटिमाते।

अंधकार जग का हरता इक चन्द्रमा अकेला।। 1।।

लोहे की पटरियों पर होते अनेक डिब्बे।

लेकिन सभी को इंजन है खींचता अकेला।। 2।।

होते हैं ओखली में अनगिनत धान के कण।

लेकिन सभी को मूसल दल डालता अकेला।। 3।।

एक रोज शहाजहाँ के दरबार में अमरसिंह।

अपनी कटार का बल दिखला गया अकेला।। 4।।

लंका पुरी जला के असुरों का मद मिटा के।

हनुमान राम दल में आ मिल गया अकेला।। 5।।

जापान में सजाकर आजाद हिन्द सेना।

नेता सुभाष जौहर दिखला गया अकेला।। 6।।

था कुल जगत् विरोधी तिस पर ऋषि दयानन्द। 

वैदिक धरम का झंडा लहरा गया अकेला।। 7।। 

गायक - सौरभ आर्य सुमन
लेखक - आर्य जी
Label - Arya Sangeet